बप्पा और मैं 

भारत एक ऐसा अनोखा देश है जहां विभिन्न धर्मों के त्योहारों को बहुत सद्भावना से मनाता जाता है। उनमें से मेरा अपना पसंदीदा है गणेश चतुर्थी – एक उमंग भरा ऐसा पर्व जब भगवान ‘श्री गणेश’ कैलाश पर्वत से भक्तों के घर अतिथि बन विराजमान होते हैं। इस मौके पर विश्व भार में 10 दिवसीय गणेश उत्सव बहुत बढ़-चढ़कर मनाया जाता है।

इन दिनों में बप्पा के प्रत्येक भक्तो के मन, उनके प्रति एक विशेष प्रेम, अपार श्रद्धा और व्यक्तिगत भावनाओ से भरे हुए मिलेंगे। उन्होंने ‘गौरीगणेश’ को संकटों से पार लगा उनके जीवन में खुशियो से भरते हुए अनेकों बार उनकी उपस्थिति मेरी तरह अपने-अपने जीवन में महसूस जरूर की होगी। सभी भक्तों की तरह ‘विनायक’ और मेरा रिश्ता भी अनोखा है।

हर साल जब गणेश चतुर्थी का मुहूर्त पंचाग में देखती हूं तब यकायक मेरे मन-मस्तिष्क में एक दृश्य की प्रतिच्छाया स्वचलित चलने लगती है जब मैं ‘चतुर्भुज’ से यथार्य में रुबरु हुई थी।

ये घटना तब की हैं जब मैं लगभग 9 वर्ष की होंगी। मैंने उस समय जो देखा उस पर विश्वास करना शायद किसी के लिए सम्भव नहीं होगा पर वो प्रत्येक चित्र मेरे मन में अभी भी ताजी है क्युकी ‘वक्रतुण्ड’ के साथ एक छोटा सा क्षण भी अनन्त काल तक स्मरणीय रहने के लिए बहुत पर्याप्त है।

हमारे पूर्वज जबलपुर के पास भिड़की नामक छोटे से गांव में रहा करते थे, जहां मां नर्मदा का भी आशीर्वाद कलकल कर बहता है। साल में एक बार छुट्टियों में सभी रिश्तेदार वहाँ इकट्ठा होते थे और हमे सुनने मिलती थी अनेको रोचक कहानियां, जब पिता, बुआ और चाचा सभी पढ़ने नर्मदा नदी पार किया करते थे, बाढ़ की अनेको किस्से और उनके गहरे पानी में गोते लगाने और बचाव की कई कहानियां मेरे दिमाग में अंकित होती रही।

एक दिन हम पिकनिक के लिए धुआंधार झरने पर गए। झरने की बहती तेज बौछार की शांत ध्वनि मंत्रमुग्ध कर रही थी। एक छोर में लड़के-लड़कियों के समूह को पानी में अठखेलियाँ करते देख हम तीनो बहनें अपने पिता से नदी में ले चलने की जिद करने लगीं। हमारे पिता सहमत हो गए और दोनों बहनों को अपने दोनों हाथों से अलग-अलग तरफ पकड़ लिया और बच गई मैं, सोच-विचार के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि “तुम एक हाथ से मेरी शर्ट और दूसरे हाथ से बहन की पोशाक कसकर पकड़ लो और सम्भलकर धीरे-धीरे आगे चलना।”

एक-दूसरे का हाथ पकड़कर हम धीरे-धीरे पानी में उतरे। चूँकि मैं उनमें सबसे छोटी थी इसलिए पानी का स्तर मेरे कंधे तक पहुँच रहा था।

एक-दूसरे पर पानी उछालते हुए, मैं अपने बहनों के साथ बहुत सुखद समय बिता रही थी। हम सिर से पैर तक भीग गए और मेरी बड़ी बहन छींक छींककर कांपने लगी। हमे कुछ पल और खेलना था, अतृप्त हो जैसे हम आए थे वैसे एक दूजे को पकड़कर वापस जाने लगे मगर लौटते समय कुछ घटित होना पहले से तय था।

संभालकर चलने के बाबजूद अचानक मेरा एक पैर पत्थरों के बीच जा फंसा और इससे पहले किसी को कुछ समझ आता तबतक उनसे मेरी पकड़ छूट गई। मैं अपने दूसरे पैर को संतुलित करने पत्थरों को पैरों से टटोलती रही पर जैसे उस स्थान में कुछ भी ना था और पानी का स्तर मेरे सिर के ऊपर आ पहुंचा जिस कारण मैं पूर्णरूप से पानी में लहराती हुई डूबने की कगार में आ पहुँची।

मैं अपने परिवार को देखने असमर्थ थी और उस कुछ सेकंड के भीतर मैंने अपनी बहनों और पिता को जोर-जोर से मेरा नाम पुकारते हुए सुना, पर तब तक मैं पूरी तरह पानी के अंदर समा चुकी थी। मैं तेजी से अपनी आंखें झपका पैर-हाथ हिला यहां-वहां देखती रही। पानी का ऊपरी स्तर काफी ऊँचा हो चुका था, मुझे एहसास हुआ कि मैं अनंत गहराई में जा चुकी हूं जहा से बच निकलना मेरी जैसी नौ साल की बच्ची जिसे तैरना नहीं आता उसके लिए नामुमकिन है।

ऐसी विकराल परिस्थिति में भी पता नहीं क्यु निराशा और घबराहट मेरे मन से कोसों दूर थे। मुझे पूर्वाभास होने लगा कि अब मेरा अंत आ चुका है और मैं अगले पल लगभग बेसुध होने लगी पर इसबीच मुझमें कोई शक्ति सी उत्पन्न हुई शायद संभवतः मेरे अंतःकरण को अंदेशा हो चुका था कि ‘दुखहर्ता’ मेरी रक्षा करने आने वाले है।

नदी का मटमैल पानी अबतक अंधकारमय था, पर जब ‘एकदंत’ का आगमन होने वाला होता हैं तो वह स्थान अपनेआप प्रकाशमान होने लगता है।

कुछ क्षण पहले मुझे अनिच्छित हो जाना था पर उस तेज रोशनी लिए साफ-सुथरे पानी की लय मेरी ओर जैसे-जैसे बढ़ती जा रही थी मुझमें उतना सामर्थ्य भरती जा रही थी।

उन शांत लहरों के बीच,एकाएक मुझे ‘बालगणपति’ की मूर्ति निश्चित रूप से दिखाई देने लगी और ‘गजरूप’ के साथ एक नन्हा सांप गोते मारते हुए निरंतर चलता हुआ मेरी ओर आने लगा, जैसे भगवान शिव जी अपने पुत्र गणेश संग मुझे अपने दर्शन दे रहे हों।

मैंने उन्हें देखते साथ कृतज्ञतापूर्वक हाथ जोड़ लिए। मुझे इस क्षण बिल्कुल भी आभास ना था कि मैं आज बच पाऊँगी या माँ नर्मदा में समा अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगी। 

मैंने ‘भालचन्द्र’ के सामने खुदको समर्पित कर दिया। उस पल ऐसा लगा जैसे प्रभु आप ही जीवन देने वाले हैं और आप ही हरने वाले, आज जान चली भी गई तो क्या? आपके दर्शन प्राप्त हो गए मेरा जीवन सफल हो गया।

जैसे ही वे मेरे सामने से गुजरे, वो रोशनी उनके साथ गायब होती चली गई, शांत पानी की जगह अब तीव्र बहाव था और अंधकार वापिस छाने लगा।

मैं बेहोश होने लगी और इसी बीच पिता तेजी से मेरा हाथ खींचकर मुझे गहराई से बाहर निकालने का प्रयास करने लगे। 

वे सफल हुए और उनकी डबडबाई आंखे मुझे गले लगा बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह गई। पूरी घटना मात्र 20 सेकंड से भी कम समय तक चली होगी पर उन यादों को मैं कभी भूल नहीं सकती जिसने मुझे नया जीवनदान दिया। मैं शांत और चुप जरूर थी पर मन कही ओर ‘विग्नेश’ के साथ बहता चला जा रहा था।

माँ ने झटपट तौलिये लेकर मुझे ढँक कर पोछने लगी और टूटी आवाज़ में मेरी पीठ थपथपा मुझसे पूछती हैं, ” तू ठीक है ना गुड़िया?”

मैने अपना सर हाँ में हिलाया और हम मिश्रित अनुभवों के साथ वापस चले गए, कार की पीछे की सीट पर दोनों तरफ मेरी बहनें मेरा हाथ थामे मेरे गालों को पुचकारते सहलाने लगी और कुछ कुछ देर में माँ आगे की सीट से मुझे देख सुनिश्चित करती रही कि मैं ठीक हूँ।

हम घर पहुँचे और मैं इसे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ साझा करना चाहती थी जो मेरी बातों पर विश्वास कर सके। मैंने अपनी मां को अकेला पाकर उन्हें स्नेह दिखाते हुए पीछे से आलिंगन किया, उन्होंने मुझे आगे की ओर लाते हुए पूछा, “तुम कुछ कहना चाहती हो?” और मैंने उन्हें अपनी आँखों देखी सब कुछ बताया।

अंत तक मुझे बिना टोके वे मेरी बातें ध्यान से सुनती रही और कहा “मुझे यकीन है कि ‘बप्पा’ जरूर प्रकट हुए होंगे और उन्होंने आपके प्राणों की रक्षा जरूर की होगी क्युकी आप उनके सबसे प्यारे बच्चे हैं। अपने जीवन में हमेशा ‘पार्वतीनंदन’ के प्रति आभारी रखना।”

और मैं घर के मंदिर पर स्थित ‘गणराज’ की मूर्ति के सामने अपना मस्तक जोड़ उनसे आशीर्वाद ले अपने आगामी जीवन के आने वाले हर दिन उनसे उस अनमोल रिश्ते की पकड़ रोज मजबूत और दृढ़ होती महसूस करती रही। 

बप्पा आप पर भी अपनी कृपा बरसाये, इसी प्रर्थना के साथ- आपकी रुचि पंत