“कचरा!”
डिंगडोग
“कचरा”
ममता फरिश्ता काम्प्लेक्स में अपने नगरनिगम के लाल, हरे, काले रंगों के कचरे के बड़े डिब्बे लिए एक-एक घर की घंटी बजाती कचरा इकट्टा करने रोज की तरह आवाज लगाने लगी।
उसीके साथ-साथ इसी समय बाकी कामवालियां भी अपने-अपने लगे घरों में साफ-सफाई करने आ जा रही थी और कुछ रहवासी अपने कामधंधे के लिए भी घर से निकल रहे थे।
उस व्यस्त फ्लोर पर सभी ने एक बार में अपने अपने कचरे खुद या अपने घर पर काम करने आई बाई के हाथ बाहर भिजवा दिए और कई सीधा उन डिब्बों में अपने वेस्ट डाल अपने घरों के भीतर चले गए।
उस फ्लोर पर एक घर शेष था जिसमें अभी-अभी कोई नये लोग रहने आये थे। कल भी उन्होंने कचरा उसके जाने का बाद बाहर रखा और पुरा फ्लोर बदबूदार हो गया।
वो कल की तरह आज बिडिंग मेनेजर से डाट नही खाना चाहती थी, इसलिए ममता ने पुनः घंटी बजाई पर कोई न आया, उसने उस घर के सामने जाकर जोर से आवाज लगाई।
” दीदी कचरा होतो अभी दे दिजिए!”
सुबह के नौ बजे अपनी बदहवास नींद में चुर वो मेमसाहब अपनी नाक मुंह बिचकाकर अपने घर के दरवाजे को आधा खोल, कचरे से पिलपिलाती झिल्ली उसके पैर की ओर जोर से फेंककर झट से अपना दरवाजा बंद कर देती है।
“ये कचरा बिनने वाले दो कोडी के लोग सुबह-सुबह हमारी नीद खराब करने मूंह उठाकर चले आते है!! गवार कही के!!” वो अपने घर के भीतर जोरों से बड़बडाती रही और दरवाजे के इस पार खड़ी ममता उनकी बाते सुन हतप्रभ रह गई।
वो सोचती रह गई कि काम तो काम होता है, चाहे वो एअरकंडीशनर कमरे में बैठकर कम्प्यूटर चलाने वाला हो या गटर साफ करने वाला, अपना-अपना पेट पालने परिश्रम तो सभी करते है। उनकी महनत आंकने वो किसी से नही कह रही पर इस तरह से तिरस्कार करना क्या सही है?
उन्हें उसे ऐसा कहता सुन टीस जरूर हुई और एकाएक ममता के कानों के साथ उसकी भीगी आंखे उनके आलिशान करिगरी किये हुए दरवाजे पर जा अटकी और एक पल को उनके कहे एक-एक शब्द उसके दिमाग में घुमने लगे। उसकी खोई हुई नजरों ने अपने पैरो बीच कुछ बहता हुआ पाया। उसने नीचे देखा और अपने जूते झट से अलग कर लिए।
उनके द्वारा बैन की हुई नष्ट न होने वाली पन्नी, जिसे वर्ल्ड लाइफ फेडेरेशन के आंकड़े अनुसार प्रदेश में
रोजाना 20 गायों की मौत का कारण बन रही हैं। उनके फैंकने के जोर से वो पूरी तरह से फट गई थी और उससे तुरंत बदबू मारती उनके घर की सड़ीगली जूठन के साथ डिस्पोजेबल चम्मच, घड़ी के सेल, सेनेटरी पेड आदि साफ टाइल्स पर धरधराकर जहाताहा फैल गए।
वो अपने दस्ताने पहने हाथों से उन्हें उठा वेस्ट अनुसार
नगरनिगम के डिब्बो में डाल तो देती है पर तबतक उससे निकल चुका गंदा कचरे का पानी फर्श पर फैल गया।
उसने खुद को समझाया कि सालों से कुछ घरों से ऐसी ओछी प्रतिक्रिया मिलना उसके लिए तो आम बात थी फिर इतना दिल से क्यो लगना? जाने दो।
“एक ही झिल्ली में सब तरह का कचरा नही डाला जाता” ये बात नगरनिगम के कर्मचारी समय-समय पर
खूद आकर और पेमपलेट द्वारा सालों से बतलाते रहते है।
मां तो अनपढ थी फिर भी उन्हें इतनी समझ थी पर इतने बड़े पढ़े-लिखे लोगों को भला ये आसान बात
क्यो नही समझ आती? जिन्हें सुखा, गिला और प्रकृति के लिए जोखिम वाले सामान के डिब्बो बीच अन्तर ही नही पता!
जो जहा मन हो बिना विभाजन किए, किचन का वेस्ट, प्लास्टिक सामान, सेल बैटरीज, बिना लाल क्रॉस किए पेपर में लपेट कर पैड डायपर की अलग झिल्ली, टूटे कांच बिना सोचे की आपके फैंकने के बाद उस कचरे को कुत्ते, गाय या कचरा बिनने वाले के खोलने पर वो चौटिल हो सकते है और ना ही अपने घर से होती पर्यावरण को सुरक्षित रखने की अति सरल और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी वे दिन भर मोबाइल पर उंगलिया चलाने वाली अति व्यस्त जनता समय आभाव का बहाना कर सभी कचरा अलग करने में असमर्थ हो एक साथ ठूंसकर, सरकार को वायु, जल, मिट्टी के बढ़ते प्रदुषण के लिए बेझिझक कोसने देर नही लगाती।
कचरा तो बीन गया पर गंदगी का वो लसलसा लारदार पानी जस का तस था।
” सफाई वाली तो आकर जा चुकी और उसका काम कचरा इकट्टा करना है गंदगी साफ करना नही, एक बार को कर भी दे पर उसके पास तो सफाई का सामान ही नही है, बाकी घरों से कचरा लेने देर भी हो रही है।” उसे उस फ्लोर को ऐसे ही गंदगी के बीच छोड़कर जाने के अलावा कोई रास्ता ना सुझा और वो एक के बाद एक दूसरे फ्लोर में कचरा इकट्ठे करने यही सोचकर निकल गई की जब सफाई वाली दिखेगी तो उससे कहकर यहा सफाई करवा दूंगी।
वही कुछ घंटो बाद जब वो मेमसाहब सजधज कर, परफ्यूम मार, शौपिंग के लिए माॅल निकलने अपना दरवाजा बंद कर अपनी चिकनी हाई हिल्स से लिफ्ट की ओर जाने मुड़ी नही की वो धम्म से उस मक्खियों से भिनकते अपने द्वारा फैंके खचरे में जा फिसली।
तभी सामने वाले घर से काम कर निकलती बाई ने उन्हें फर्श पर से अपने चिपचिपाते हाथों से उठने का बार-बार असफल प्रयास करते पाया और दूसरी ओर से उसी समय ममता सफाई वाली को लेकर आ पहुंची।
वे तीनों उनकी मदद करने उनकी ओर फुरती दिखते बढ़ने लगीं।
” ये क्या तरीका है गवारों?ना सफाई करने की अक्ल है ना ही कचरा हटाने की!! तुम लोग को नौकरी से नही निकलवाया तो मेरा नाम नही! रुको वही, यहा मत आना, वही खड़ी रहो, अपने गन्दे हाथों से मुझे छुना भी मत, ” वो मेमसाहब गिरती संभलती हुई बड़बड़ाते कहती है।
” हा तो पड़ी रह वैसी!! एक तो मदद कर रहे है और अकड़ दिखा रही है, देखा था मैंने कैसे कचरा फेंककर दे रही थी सुबह! देख अब अपने किए पर कैसी लोट रही है।”
“चुपकर अपनी औकात देखकर बात कर अनपढ!!”
“हा मानते है आप लोग जैसे बड़े स्कूल कालेज में नही गए पर कचरा का विभाजन कर फेंकने की तमीज हमारे पास आपसे बहतर है। अनपढ गवार आपको हमें नही बल्की हमें आपको कहना,,,”
” दीदी माफ करियेगा।”ममता ने मामला बढ़ता देख उसे चुप करा दिया! जो वो आज सुबह ना कह सकती थी उस तुनुकमिज़ाज बाई ने उसे सुना दिया।
सफाई वाली बिना कुछ कहे वो गंदगी साफ कर ममता के साथ चली गई और वो मेमसाहब अपना सर झूकाए अपनी पीठ सरकाकर दरवाजे का सहारा लेते अपने महंगे कपड़ों से रिसते हुई बदबूदार लार को अपने साथ घर के भीतर ले जाती ये सोचती रही की असलियत में गवार है कौन?
आपकी
रुचि पंत
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