मूली के पराठे

मूली ले लो!!

सीजन की आखिरी मूली ले लो!!

“भैया एक किलो तौल देना” सुमित सब्जी के ठेले के बीच खड़ा हो बड़े ध्यान से मूली छाँट उन्हें देने लगा।

“आज का मूली के पराठे बनहे?”

“अब जो श्रीमतीजी खबा दे!!” सुमित मुस्कुराते सब्जी का झोला अपनी डिक्की में रख चल पड़ा, घर के अंदर घुस ही रहा था कि झोले से मूली की लहराती हुई हरी पत्तियां देखकर सुधा की सासें फूलने लगी।

“मूली!आपको मैंने सूजी लाने कहा था”

“तुमने मुझे साफ़साफ मूली लाने कहा था और पिछले हफ्ते ही तो लाई थी मैंने सूजी”

“लो कर लो बात!!रोज सुबह नाश्ते में उपमा खाते याद नहीं रहती की सूजी भी खत्म हो सकती हैं!! lअपने कानों का इलाज करवा लीजिए!!आप सुनते कुछ है और करते कुछ और हैं”

“अब तुम दरवाजे में ही शुरू हो गई! मैंने तुमसे हजार बार कहा है कि मुझे बकायदा लिस्ट बनाकर दिया करो”

“वाह जी!!कितनी बार बनाकर दी है, फिर भी आप उसे घर में ही भूल जाते हैं और मुझे फोन लगा एक-एक दुकान से सामान पूछते रहते है!!तो लिस्ट बनाने का फायदा क्या हुआ??”

” तो तुम क्यों नहीं ले आती?”

“अब ये काम भी मैं ही करूंगी? एक भी जिम्मेदारी वाला काम आपसे कह दो तो उल्टा कर आते हैं!!”

“अब हो गया सुधा!! सुबह-सुबह वो भी मेरे छुट्टी वाले दिन मेरा दिमाग ना खराब किया करो” सुमित झोला टेबल पर रखकर भीतर कमरे में जाने लगे।

“हर आदमी को सच्चाई कह दो कांटे लग जाते हैं, बुरा माने तो माने!! मुझे तो आज नाश्ते में उपमा बनाना था!अब क्या बनाऊं?”

वहीं कमरे के बाहर आते जीतू और गीता की नजर टेबल पर पड़ी।

“वाह मम्मी आज मूली के पराठे बनाने वाली हो?”

“नहीं तो!! तुम तो अपने पापा के काम जानते हो सूजी को मूली सुन उठा ले आए?”

“तो मूली के पराठे ही बना दो”

इसी बीच सुमित कमरे से हॉल में आने लगे उन्हें आता देख सुधा के स्वर और जोर से निकलने लगे। 

“तुम लोगों क्या है ऑर्डर दिया निकल गए!! इसको घिसे कौन? घिसने से भी बन जाते तो भी चल जाता! बहनजी को बड़े जतन से निचोड़ना पड़ता है, सम्भल का हौले हौले बेलना पड़ता है, तब जाके इस नासपिटी के पराठे बनते है!!”

सुमन का मानना था जिस खाने को खाने में मात्र 10 मिनट लगते हो वैसी कुकिंग क्यो करना?वहीं सुमित को लंबी प्रोसेसिंग वाले खाने बड़े पसंद है, जैसे कि गाजर का हलवा और हाँ मूली के पराठे भी!!

वो चाहती थी सुमित किचन में आकर उसकी सबसे नापसंद चीज बनाने में मदद करे!!

” पापा!!मम्मी आपको मदद के लिए बुला रही हैं!!” यह कहते वे बाहर खेलने निकल गए।

“अरे मैंने कब कहा?”सुधा जी अपने दौड़ते भागते बच्चों की ओर देखते हुए कहने लगी, सुमित को किचन की ओर आते देख उसने कहा।

“किस बात पर मुंह फुलाया है आपने?एक तो गलती करो और नाराज भी हो जाओ ये बढ़िया है!!”

सुमित मासूम बच्चे की तरह बिना जवाब दिए झोले में से मूली निकाल उसे साफ करने लगे।

” अब ऐसे चेहरा उतारे बैठेंगे तो मैं नहीं बनाने वाली!!”

” वैसे भी तुम कब मेरे लिए बनाती हो? पूरी ठंड निकल गई ये मौसम की आखिरी मूली मेरे हाथों में है!”

“लो जी कर लो बात कैसे नहीं बनाएं!!”

” याद करो कब बनाये आखरी बार??” सुमित ने अपने शिकायत का पिटारा खोल दिया।अगर मां होती तो कितनी दफा बनाकर खिला चुकी होती ” सुमित ने चुपके से कहा कि सुधा सुन भी ले और जवाब भी ना दे।

“अब बना तो रही हूँ !! कई बार आपकी हरकतें देखकर लगता है यह सब आप जानबूझकर करते हैं”

“सुधा सच में मुझे मूली ही सुनाई दी थी!! क्या मुझे अच्छा लगता है तुमसे फालतू का मेहनत करवाना” सुमित ने निर्दोष भाव से कहा।

कुछ देर मेहनत करने के बाद, सबको पराठे खाने मिले, जो सच में बने बड़े लजीज थे।

घर में मूली सूजी का टॉपिक, पराठो के सफाचट होते समाप्त हो गये।

शाम हुई और चाय की चुस्कियों के बीच सुधा ने सुमित से कहा,

“देखिए कल से फिर सोमवार लग जाएगा मुझे बाजार ले चलिए”

“ठीक है चाय खत्म कर चलते हैं !”

सुधा ने बाजार से एक-एक कर हफ्ते भर लगने वाली गृहस्थी की सारी सामग्री ले ली। वे शॉपिंग कर अपनी ऐक्टिवा के समीप पहुंचने लगे।

“जरा डिक्की खोलना!!”

पर अचानक सुमित कुछ याद कर घबराते हुए कहने लगे,

“अरे नहीं इसे मैं आगे अपने पैरों के पीछे रख लेता हूं, भीतर रखोगी तो पेट्रोल की बास आएगी!”

“अच्छा ठीक है मेरा पर्स तो रख दीजिए! आजकल शाम को इन रास्तों पर बड़ी चोरियां हो रही है, आप ही तो कह रहे थे!”

सुमित आज अपनी बातों में ही फंस गया!! उसके पास डिक्की खोलने के अलावा अब कोई चारा नहीं था, कपकपाती उँगलियों से उसने डिक्की खोलना चाही, जैसे ही मुस्कराती सुमन ने अपना पर्स भीतर रखना चाहा उसे डिक्की में रखी सूजी का पैकेट और उसके भीतर का एक-एक कर्कश दाना सुमन पर दांत निपोरते हंसते दिखाई देने लगे!!

सुमन ने सुमित के कान पकड़ने समान सूजी का पैकेट पकड़कर उठाया, सुमित को तीखी नजरों से देखते हुए कहा,

“लो जी कर लो बात!चलिए घर आपको तो मैं बताती हूं!”

भले अब सुमित कितनी भी धीरे गाड़ी क्यों ना चला ले, दो गली छोड़कर आने वाला आज उनका घर उनके पहुँचने का तबियत से इन्तेज़ार कर रहा होगा क्यों आपको क्या लगता है?

मुझे मेल कर जरूर बताये।

आपकी रुचि पंत