“कमी क्या है तुममें? उपरवाले ने दोनों हाथ पैर दिए है और इतने अच्छे पेरेंट्स, पढ़ी-लिखी भी हो, क्या इतना कुछ लाइफ खुशी-खुशी जीने के लिये काफ़ी नहीं है?”
“मेरी तरफ देखो मालिनी!!”
“कितनों के पास ये भी नहीं होता!! बीमार तुम नहीं!! बीमार दूसरों की सोच है!!
“जो अब तक हुआ उसे एक बुरे सपने की तरह भूल जाओ और ऐसे जीकर दिखाओ जैसा तुम सच में जीना चाहती हो”
मालिनी की थैरेपिस्ट सुगंधा जी ने उसे समझाते हुए कहा।
“कोशिश करोगी” मालिनी अपने आंसू पोछती हुई वहां से उठ खड़ी हुई।
उनके लिए यह सब कहना शायद आसान था मगर मालिनी कैसे वह सभी बातें किसी बुरे सपने की तरह भूल सकती थी जिसने सत्या को उससे हमेशा के लिए दूर कर दिया था। काश वो अपनी जिंदगी से वो एक दिन मिटा सकती जो उसे दिन-रात रह रहकर पीड़ा देते नहीं थकता था।
आज से 3 साल पहले गुजरा वो काला दिन, मालिनी की खुशहाल जिंदगी आंसुओं की बेड़ियों से जकड कही खो चुकी थी।
उस दिन,सत्या और मालिनी के बीच कुछ ये हुआ था। ⬅️⬅️⬅️
कैब बहुत तेजी से सड़क पर भाग रही थी, भीतर बैठे हैरान-परेशान सत्या ने मालिनी का हाथ कसकर थामे हुए उससे कहा, जिसका मासूम सा चेहरा उसके मजबूत कंधों पर बदहवास और बेफिक्री से टिका हुआ है।
“मालिनी!! तुम्हें अचानक क्या हो गया था? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा! भैया हॉस्पिटल के लिए गाड़ी थोड़ा और तेज भगाओ!”
“भाईसाहब जितना तेज बढ़ा सकता हूँ बढ़ा रहा हूं सब्र रखे जल्द पहुंचा दूंगा!! गाड़ी है कोई हवाई जहाज नहीं!!” ड्राइवर ने झुंझला कर अपने बैक मिरर से देखते हुए सत्या से कहा, जो उसकी कैब में बैठते साथ उसे अबतक दस बार जल्दी चलाने टोक चुका था।
उसकी बातों का सत्या पर कोई असर नहीं हुआ वो तो बस चाहता था कि जल्द से जल्द मालिनी को डॉक्टर को दिखा आए। आखिर उसे उस समय ऐसा क्या हो गया था कि वह अचानक फर्श में पड़ी पत्थर सी बेजान हो गई थी।
“मेरी ओर देखो मालिनी!! तुम ठीक हो जाओगी, हम अस्पताल पहुंच रहे हैं।” मालिनी को अपनी आँखें खोलने का प्रयास करते देख सत्या ने घबराते हुए कहा ।
” मैं ठीक हूँ सत्या! मुझे कुछ नहीं हुआ! वो तो बस ऐसे ही,,,,,हम घर चलते है!!”
मालिनी को थोड़ा होश आते ही उसे एहसास हुआ कि कुछ पल पहले उसके साथ क्या हुआ होगा और सत्या ने क्या देखा!
यही सोचते उसकी आंखे आंसुओं से भरने लगी, वो जैसे तैसे उन्हें छिपाने खुदको सत्या की नजर से फेरकर दूसरी ओर देखने लगी।
वो राज जो इतने महीने संदूक में बंद पड़ा था, मानो उसकी छुपी हुई चाबी आज सत्या के हाथ लग गई हो, जिसे बड़े जतन से मालिनी और उसके परिवार वालो ने
सत्या से आजतक छिपा रखी थी।
मालिनी और सत्या की शादी तब एक नए घर की पुताई की महक की तरह ताज़ी थी। जिनकी एक वैवाहिक साइट के माध्यम से अरेंज मैरिज हुई। वे फोन, वीडियो कॉल आदि द्वारा एक-दूसरे को करीब चार महीने की जान पहचान होने के बाद शादी करने का फैसला करते है।
दोनों परिवारों ने हामी भी भर दी और मालिनी के माता-पिता की इच्छा अनुसार, उन्होंने चुनिंदा रिश्तेदारों के बीच सात फेरे ले लिए।
“लो आ गया आपका हॉस्पिटल!”ड्राइवर झट से ब्रेक लगाते हुए सत्या से कहने लगा।
सत्या ने फटाफट पर्स से पैसे निकालकर ड्राइवर को थमाए और बिना छुट्टा पैसा वापिस लिए मालिनी को संभालते हॉस्पिटल के भीतर जाने लगा। डॉक्टर से अपॉइंटमेंट की अपनी बारी का इंतजार करते वह पलपल घड़ी को देखने लगा।
“मालिनी सिन्हा!!”
सफेद कपड़े पहने नर्स ने सभी इंतजार करते हुए लोगों के बीच आकर कहा।
“जी यहां!” सत्या ने अपना एक हाथ ऊपर करके उनसे कहा।
“चलिये आपका नंबर आ गया “
“तो, मालिनी, अब कैसा लग रहा है? क्या आपको मिर्गी शुरू से है?” डॉक्टर ने विनम्रता से उससे पूछा।
मालिनी ने सत्या की ओर देखकर डगमगाते हुए कहा,
“आ..आ.., मुझे ये बचपन से है!”
डॉक्टर और अपनी झूठी पत्नी के बीच होती हर एक लाइन सुनकर, सत्या को अपने साथ विश्वासघात महसूस होने लगा और उसकी हर एक सांस क्रोध से भरने लगी।
जैसे सत्या का नाम है सत्या बिल्कुल वैसा ही है। वो सीधी-सीधी बात करने और सुनने का आदी है। भले सामने वाले को बात कितने भी बुरी लगे पर वह कभी किसी से झूठ नहीं बोल सकता और उससे कोई झूठ बोले उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता।
उसका सिंपल सा लॉजिक है! जो रिश्ते झूठ की बुनियाद पर खड़े हो, चालबाजी और बेईमानी से जिन्हे सींचा गया हो, उस कमजोर संबंध का जल्द ध्वस्त हो जाना सुनिश्चित है।
वो आज तक मात्र एक इंसान से 100 प्रतिशत सच्चाई की उम्मीद रखता रहा! अपने जीवन साथी से! जिसने उसे आज पूरी दुनिया के सामने छल कर रख दिया।
अखिर क्या वजह थी जो मालिनी ने उससे ये बात अनजान रखी?
यकायक उसे उसके द्वारा अनेकों बार शादी से पहले और बाद में मालिनी से पूछने की बात याद आने लगी,
“क्या तुम मुझसे अपनी कोई बात सांझा करना चाहती हो? या कुछ है जो मुझसे छुपी हो तो बेझिझक कह सकती हो!”
उत्तर में उसे बस हंसती हुई मालिनी की झूठी लिपटे मिली, उससे सच्चा प्यार होने का इतने महीनों ढोंग रचती रही!
वो मालिनी को खुद से और खुदा से ज्यादा प्यार करता आया है! अपने रिश्ते में शीतल जल की तरह तरल रहने के बावजूद उसे मालिनी ने सीधा-सीधा धोखा देकर मानो उसे ठग लिया हो। झूठ की परत उतरने के बाद, सत्या का मालिनी के प्रति प्रेम आज एक पल में स्वाहा होने लगा।
दूसरी ओर मालिनी के जीवन का इतना बड़ा रहस्य आज अचानक सत्या के सामने बम बनकर फूट पड़ा। उससे इस रहस्य से इतनी जल्दी पर्दा उठने की उम्मीद नहीं थी। फिर भी आज जो हुआ, एक ना एक दिन उसे होना ही था।
डॉक्टर से पूरी बात होने के बाद मालिनी ने बिना सत्या से नजर मिलाए तिलमिलाकर कहा,
“चलो!!”
जैसे अब वह अपने दफन किए हुए सच का सामना करने के लिए तैयार हो गई हो।
वो रास्ता जो कुछ पल पहले उनके खूबसूरत प्यार और अपनापन से सराबोर था, लौटते वक्त यही रास्ता दोनों के बीच काटो की सेज से पट चुका था।
मात्र एक छुपी हुई सच्चाई की हवा इतनी ताकतवर थी कि दोनों के एक-दूसरे के प्रति इतनी मोहब्बत पल भर में ताश के पत्तों की तरह तबाह करने सक्षम थी।
उस पल ने उनकी शादी में कड़वाहट के बीच बो दिए थे। उस पर भी दोनों ने अपनी तरफ से इसे सुलझाने की कोई कोशिश नहीं की और बड़ी तेजी से आक्रोश के पौधे अंकुरित होने लगे।
इन चुभन भरे दिनों के बीच मालिनी जो खुद एक पीड़िता है, बार-बार खुद से यही सवाल करती रह गई।
दुनिया में ऐसा कौन है जो पूरी तरह से स्वस्थ है?
क्या मिर्गी से ग्रसित होना उसकी पसंद थी?
उन सभी लाचार भावना के बीच वह एकाएक अपने बचपन से हुए उसके साथ हादसों को याद करते और दुखी होने लगी।
उसकी स्कूल की वो घटना जब असेंबली के दौरान उसे सबके सामने मिर्गी का दौरा आया था और अगले दिन सब उसे अजीब सी नजरों से देख कर दूर भागने लगे जैसे वो कोई अछूत हो। लोगों के उसके प्रति ऐसी दुर्भावना होने के कारण वो बार-बार स्कूल बदलने की जिद अपने मां-बाप से करती रही। पर जगह बदलने से उसके दुख घटने के बजाय और बढ़ने लगे।
बड़े होने पर उसके कॉलेज और कामकाजी जीवन में भी उसकी बीमारी का पता चलते, औरों का रवैया बदलते देख उसे बहुत दुख पहुंचता।
जब शादी के प्रस्ताव आने पर उन्हें बीमारी के विषय में बताते तो हर बार हाँ होते-होते वे ना में परिवर्तित हो जाते और उनमें से हर एक के बाण भरे सवाल उसकी तकलीफ को बारबार चीरकर रख देते।
“क्या ये बीमारी छूने से फैलती है?”
“माँ तो बन पाएगी ना और बच्चे को भी यही बीमारी हो गई तो?’
“क्या यह जानलेवा है?”
“अगर तबीयत खराब हुई तो खर्च कौन उठाएगा?”
इन सभी के बीच मालिनी खुद को अकेलेपन से गिरा हुआ पाती, जिसकी वजह से वो लंबे समय से डिप्रेशन से जूझने लगी। आज तक ज़माने से उसे प्रेम के कुछ शब्द तो दूर तिरस्कार के अलावा कुछ नहीं मिला था।
पर जब सत्या ने उसकी बेरंग जीवन में दस्तक दी तो उसे लगा की वो उसी के लिए बना है। उसका इतना ख्याल करना, दिल की बात बेबाकी से कहता देख, वो उसपर मोहित होने से खुदको रोक नहीं पाई।
अपने माता-पिता के बाद सत्या ही वो एक मात्र शख्स था जिसे उसकी परवाह थी। वह किसी हाल में उसे खोना नहीं चाहती थी, इसलिए इस बार उसने अपने परिवार वालों को राजी कर इस सच्चाई पर पर्दा डालना की ठानी।
“बेटी एक ना एक दिन उसे पता चल ही जायेगा! फिर क्या?”
” माँ में उससे इतना अपनापन और प्यार दूंगी की वो मुझे एक ना एक दिन जरूर माफ़ कर देगा!”
“अगर ना किया तो? “
” उसके साथ गुजारे उतने दिन की यादों सहारे बाकी जिंदगी खुशी से बिता लूंगी!”
शादी हुई और वो बस उससे बेतहाशा प्रेम करने लगी, उसकी जरूरतों पर ध्यान देने लगी, उसे हर पल एहसास दिलाती रही कि सत्या उसका सब कुछ है और सत्या भी उसके प्रेम में बहता चला गया।
उसे विश्वास था कि जब भी उसे पता चलेगा, उसका पवित्र प्रेम वापस सभी चीजें पहले जैसी ठीक कर देगा, पर असल में हुआ उसका उल्टा ही!
टिंग टोंग!!!!
“बेटी तुम ठीक तो हो !!”
मालिनी अपने माता-पिता को दरवाजे पर खड़ा देख चौंक गई!
“क्या सत्या ने आपको यहां आने कहा?” मालिनी ने भ्रमित होकर उनसे पूछा।
इसी बीच सत्या पीछे से आकर तेज आवाज में कहने लगा।
“हां, मैंने उन्हें बुलाया है!!”
“पर क्यों? इन सब में इन्हें बीच में लाने की क्या जरूरत है?”
“जरूरत है!! मुझे जानने का पूरा हक है कि आप सबने मुझसे असलियत क्यों छुपा कर रखी थी?”
अपने गुस्से की चरम पर पहुंच चुके सत्या ने सभी को एक लाइन में खड़ा कर पूछा।
हम अकेले में बात कर लेंगे! इन्हें प्लीज मत घसीटतो इनमें इनका कोई गलती नहीं!” मालिनी अपने माता-पिता की होती बेज्जती नहीं देखना चाहती थी।
“क्या ये तुम्हारी चाल में शामिल नहीं थे? क्या शादी के पहले उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को बताना उचित नहीं समझा? अगर तुम इस रिश्ते को शादी कहती हो तो मैं इसे धोखा कहता हूं”
ये बात तो सबको स्पष्ट थी कि अगर सत्या का क्रोध शांत ना हुआ तो स्थिति बद से बदतर होते देर नहीं लगने वाली।
“सत्या सॉरी! प्लीज ऐसा मत कहो, गलती हो गई अब इन बातों को यही खत्म करो और पहले जैसे हो जाओ!” मालिनी ने हाथ जोड़कर उससे कहा।
“बेटा तुम बहुत दयालु इंसान हो! हम सब ने यही सोचा था कि सच पता चलने के बाद तुम उससे उतना ही प्यार करते रहोगे जितना पहले करते थे” मालिनी के दुखी पिता ने कहा।
“बेटा दवाइयां पहले से ही चल रही है! उसकी तबीयत समय के साथ साथ अच्छी होती जा रही है! तुम्हारा साथ मिला तो देखना एक दिन मालिनी पूरी तरह से ठीक हो जाएगी!” रुआँसी माँ ने आगे कहा।
“आप सब मेरी एक बात ध्यान से सुन लीजिए! मैंने आपकी बेटी को कई बार मौके दिये कि वो मुझसे अपनी कोई भी बात साझा कर सकती है । अगर वो उस समय सच बता देती तो भी मैं मालिनी को खुशी खुशी अपनाता। मुझे एक मीठे झूठ से बजाय एक चुभन वाला सच सुनना मंजूर होता!” सत्या दृढ़ था।
“सत्या जो हुआ सो हुआ! चलो एक नई शुरुआत से शुरुआत करते हैं!” मालिनी ने सत्या को सभी बातों को भुलाने कहा।
“हां हम अब एक नई शुरुआत से शुरुआत जरूर करेंगे पर एक साथ नहीं!” सत्या अपनी अंगारे जैसी लाल आँख लिए मालिनी को देखते हुए कहता है।
“मतलब मैं समझी नहीं!”
मालिनी का दिल जोरों से धड़कने लगा। उसे सत्या की कही बात पर शंका होने लगी कि कहीं ये भी उसे छोड़ने की बात तो नहीं कह रहा?
“हमें अगले महीने अमेरिका के लिए रवाना होना था, तुम्हें सरप्राइस देना चाहता था! पर अब तुम्हारी टिकट मैंने
कैंसिल कर दी है! “
कुछ देर ठहर ने के बाद सत्या आगे कहता है।
“मुझे नहीं पता मैं क्या कर रहा हूं! पर इतना जरूर जानता हूं कि मुझे तुमसे और तुम्हारे कहे झूठों से ब्रेक चाहिए। तुम्हारे मम्मी पापा के साथ तुम्हारी कल सुबह की टिकट कटा दी है! ऐसी हालत में तुम्हें अकेले ट्रैवल नहीं कराना चाहता। उन्हें यहां बुलाने का एक कारण ये भी था!”
सत्या ने टूटे दिल से मालिनी से कहा। भले जो हो! मालिनी के प्रति इतने गुस्से में भी उसकी चिंता स्पष्ट दिख रही थी।
हम जिसे जितना प्यार करते हैं, असल तौर पर नाराजगी भी उसी से उतनी जताते हैं। ऊपर से सत्या का हमेशा सत्य सुनने का आदि होना उसे औरों के मुकाबले जल्द ही क्रोधित कर देता था! यही वजह उनके रिश्ते को जलाने आग का काम कर रही थी।
वह यह कहकर अपने कमरे की ओर जाने लगा और गुस्से से दरवाजा धम्म से बंद कर देता है।
मालिनी के पास बस एक अकेली रात सत्या को मनाने के लिए शेष बची थी, जिसमें वो अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश कर कुछ कर सकती थी ।
वो इतने बीच कई बार इस उम्मीद से उसका दरवाजा खटखटाते उसे पुकारती रही, गिड़गिड़ाते रही कि शायद उसका गुस्सा पिघल जाए, वो उसे गले लगा कर माफ कर दे और उनके रिश्ते पहले जैसा मधुर हो जाए।
मगर हम जैसा चाहते हैं वैसा होता कब है? नया सवेरा खुले आकाश में फैलने लगा, पर आज की इस ताजगी ने उनके जीवन को फफूंद से भर दिया था। सत्या हरगिज़ ना माना और दुखी मन से वे अपना सामान बाँधे घर से बाहर निकलने लगे।
मालिनी फिर भी इस आशा से बार-बार पलटकर सत्या के बंद दरवाजे को अपनी आंसुओं से भीगी पलकों लिए निहारती रही कि शायद वो उसे वापिस बुला ले पर ये मालिनी की बस कल्पना मात्र थी।
वो सोचती रही कि काश वो उससे पहले ही कह देती तो आज उसका बसा हुआ घोंसला ऐसे बिखर ना जाता।
कुछ हफ्तों बाद सत्या भी अमेरिका के लिए रवाना हो गया। नई जगह, नए दोस्त, नये माहौल में शरीर को रम गया, पर मन वही का वही धोका खाया हुआ। इतनी दूरी उसके मन में मालिनी के लिए कटुता का जहर घोलते जा रही थी।
इन सभी बातों को गुज़रे अब तीन साल बीत गये।
उन दोनों के बीच सब कुछ थम गया था, न तो वे किसी और के लिए आकर्षित हुए और उन्हें कोई उम्मीद थी कि वे फिर से कभी एक होंगे। एक तरह से वे अलग हो चुके थे बस अलग होने की पहल दूसरा करे उसका इन्तेज़ार कर रहे थे।
“तलाक लेकर किसी और शादी कर ले, जितना समय लगायेगा लड़की ढूंढने उतनी मुश्किल आयेगी!”
“उसे जो करना है अपनी तरफ से करे! मैं कुछ नहीं करने वाला! “
“मैंने सुना है कि वो अब अच्छी फर्म में काम करने लगी है और अपने माता-पिता के साथ यही बैंगलोर शिफ्ट हो गई है।”
“माँ मुझे देर हो रही है सोना है, कल ऑफिस भी है!”
सत्या मालिनी के बारे में कोई जानकारी ना सुनना चाहता था ना उसके बारे में कोई भी चर्चा करना चाहता था, उसका क्रोध इन लंबे वर्षो में भी जरा भी शांत नही हुआ।
“तेरे लिए कई रिश्ते आ रहे है! उन्हें क्या जवाब दूं? “
“माँ मेरे पास इन फिजूल बातों के लिए टाइम नहीं है! कितनी बार कहा है मुझसे शादी की बातें मत किया करो! आपके पास क्या कोई और बात नहीं होती? “
” तेरा गुस्सा पूरा तेरे पापा पर गया है! एक बात तो लेकर मुझसे सालों साल नाराज रहते रहे! उन्होंने बात छुपा कर रखी इसमे मेरा क्या दोष तू मुझपर क्यु भड़क रहा है?”
“माँ मेरा कहने का वो मतलब नहीं था सॉरी, आप अपने पर ना लीजिए प्लीज! “
” ठीक है तेरी बात का बुरा नहीं मान रही, बेटा मैं तुझे बहुत याद करती हूं घर वापस आ जाओ, बहुत समय हो गये तुम्हें देखे”
“मैं दीवाली में आने की सोचता हूं, अब रखता हूँ देर हो रही है गुड नाइट” ये कह कर सत्या ने फोन काट दिया।
सत्या विचलित हो अपने बिस्तर पर लेटे अपने अनवरत बदलते करवट संग वही सोचने लगा जो वो इन तीन सालों से रोज सोचता रहा कि
प्रेम जल से सीचने पर भी, दरारे लिए हम कायम है
प्यासी आकुल नदी सा रूखा हमारा रिश्ता,अब इसमे लहर आना मुश्किल है।
उन झूठी बातों की चिंगारियां आजतक दिल में सुलगती है
तंग पत्थरों सा कठोर रिश्ता हमारा, इसका मिट्टी में गड़ जाना यकीनन है।
इस बूझे रिश्ते में जान आने का सपना देखना अब बेकार है
तंग सासें लेता बेजान रिश्ता हमारा, इसमें अब जान आना, नामुमकिन है।
उलझे धागों सा नाज़ुक रिश्ता हमारा, इसे अब कटकर अलग हो जाना उचित है
हमारा अब अलग हो जाना उचित है।
हर रात वो मालिनी से खफ़ा होता और अपनी नाराजगी जताया करता सुबह होती फिर अपना पुराना पिछला भूल कर काम के सहारे जैसे तैसे दिन गुजारता, मगर रात तो फिर से आनी है।
देखते-देखते दिन गुज़रते गए और आज सालों बाद सत्या बैंगलौर से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक टैक्सी की प्रतीक्षा करते खड़ा है। अपने देश की मिट्टी की खुशबू सूँघ और अनेकों भारतीयों को देखकर उसका मन इतने समय बाद प्रफुल्लित हो उठा और टैक्सी पकड़ कर वो अपने घर के लिए रवाना होने लगा।
ये तो रही सत्या की कहानी, दूसरी तरफ अपना बसा बसाया घर उजड़ने के बाद मालिनी लंबे समय तक सत्या की तरफ से उसके द्वारा किए गए अनगिनत फोन और मैसेज के रिप्लाई का इंतजार करती रही। लेकिन जब उसने सत्या की तरफ से कोई जवाब नहीं पाया तो वो आशाहीन हो गई।
अपनी शादी की पहली वर्षगांठ पर उसने उसे कितने कॉल किए, पर हर बार उसका फोन उतनी बार काटा जा रहा था और कुछ घंटों के भीतर उसी ही दिन सत्या ने अपने एफबी अकाउंट को मैरिड से सिंगल कर दिया और मालिनी की सारी तस्वीरें डिलीट कर दी।
ये देख वह हक्की बक्की रह गई और उसे अब यकीन हो गया कि सत्या अब उसे अपने जीवन में दोबारा वापस नहीं लाना चाहता और ना ही सत्या के दिल में उसके प्रति कोई संवेदना बची है।
मालिनी के लिए उस स्थिति से बाहर आना बहुत मुश्किल भरा सफर था। वो अपने खत्म हो चुके रिश्ते की वास्तविकता स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पा रही थी और उसके जीवन में गम के वो काले बादल तूफान लेकर फिर से वापस लौट आए।
उसकी ऐसी हालत देखकर उसके माता-पिता बहुत परेशान होने लगे और उसे कॉन्सलिंग कराने ले जाने लगे।
सुगंधा जी की हर हफ्ते कॉन्सलिंग का असर धीरे धीरे मालिनी की स्थिति में सुधार लाने असरदार साबित होने लगी।
वह मानने लगी कि उससे सच छुपा कर बहुत बड़ी भूल हुई, शायद इस रिश्ते का अंत होना ही उसके गुनाहों का प्रायश्चित होगा। सत्या के साथ बिताए वो खूबसूरत पल की यादों सहारे वो अपने आगे का जीवन नए सिरे से शुरू करने लगी, उसने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया।
जब मालिनी जो हुआ उससे सबक सीख कर चलने लगी और अपनी वास्तविकता को सकारात्मक तरीके से लेकर बढ़ने लगी, तो एकाएक उसके जीवन में यही हादसा उसकी ताकत बनकर उभरने लगी जिससे उसे अपनी नई पहचान मिली। जो प्यार वो सत्या के लिए महसूस करती थी वो समय के साथ ओझल होने लगी।
उसे बेंगलुरु में बहुत अच्छी नौकरी का ऑफर आया और वो इंटरव्यू के लिए तय दिन वहां मौजूद हुई।
“आपने अपनी प्रोफाइल में लिखा है कि आप को मिर्गी का प्रॉब्लम है!”
” यह मेरे जीवन का हिस्सा है! जिसमें मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं दिखती!”
“क्या आप चाहती हैं कि इसे बाकियों से गुप्त रखा जाए?”
“मुझे इससे कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती अगर आपको मैं उचित उम्मीदवार नहीं लगती तो ये नौकरी आप किसी और को दे सकते है, जिसे रख कर आपको शर्मिंदा ना होना पड़े!”
“हम किसी और को क्यों नौकरी दे? आपको क्यों नहीं? हमारे फर्म में आपका स्वागत है मालिनी जी!”
” आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!”
मालिनी को नौकरी मिलते ही वो करीब दो सालों से अपने माता-पिता के साथ बैंगलोर शिफ्ट हो चुकी है। इसी शहर में सत्या के साथ कितनी यादे बसी होने के बावजूद अब उसे वे जरा भी तकलीफ नहीं देते।
कहानी अब,,,
सत्या से करीब 3 साल अलग होने के बाद, रोज की तरह मालिनी अपनी सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ रही थी कि अचानक उसकी नजर एक खबर पर आकर ठहर गई।
बैंगलोर: बैंगलोर-मैसूर हाईवे पर पिकअप कैब की टक्कर से एक की मौत, एक घायल। पुलिस के मुताबिक, तेज रफ्तार से जाती हुई कैब सत्य प्रकाश नाम के एक यात्री को ले जा रही थी, जिसकी उम्र 36 साल थी, जो हाल ही में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से वापस आ रहा था। चालक की मौत हो गई, जबकि दूसरा गंभीर रूप से घायल है। जो अभी फोर्टिस अस्पताल में भर्ती हैं और ब्युटारायणपुरा का निवासी हैं।
मालिनी की आँखें कुछ देर के लिए संशय से फटी रह गई!
वही पता!
वही नाम!
वही उम्र!
और वो विदेश में भी था क्या ये वही सत्या तो नहीं?
क्या ये ?
क्या ये ?
मेरा सत्या तो नहीं?
उसका दिमाग उसे पूर्ण ज़ोर लगाते समझाता रहा कि उसे अब सत्या से कोई सरोकार नहीं और ना ही होना चाहिए! जो हो सो हो! उसे क्या? क्या उसने कभी परवाह की कि उसके जाने के बाद उसका क्या हाल हुआ? वो किन हालातों से गुज़री? वो घायल जो भी इंसान हो भगवान उसे जल्द ठीक करे, मुझे इससे ज्यादा और कुछ नहीं सोचना।
और दूसरी तरफ मालिनी का दिल, दिमाग की मानने को बिल्कुल तैयार नहीं था।
वो ऑफिस जाने के लिए निकल तो पड़ी कि अचानक! मुख से केब वाले को ऑफिस का पता ना कहते हुए हॉस्पिटल का नाम निकल पड़ा।
वो भीतर खुद से पूछने लगी, “क्या वो वाकई सत्या को इतना सब हो जाने के बाद भी देखना चाहती है?” खुद की छोड़ क्या सत्या उसे देखना चाहता है? उसे तो उसकी शक्ल से भी नफरत होती होगी। फिर क्यु मालिनी? फिर क्यु?
वो खुद को कोई जवाब नहीं दे पाई और उसके कदम हॉस्पिटल के अंदर जाने लगे। वो बस यही प्राथना करती रही की ये वो सत्या ना हो! ये उसका सत्या ना हो।
उसने रिसेप्शन पर पूछा, “सत्य प्रकाश जो कल एक्सीडेंट के कारण एडमिट है वो कहा भर्ती है?” मालिनी ने अपनी तेज सांस को सामन्य करते हुए पूछा।
” 12 आईसीयू ” रिसेप्शनिस्ट ने उत्तर दिया।
ना जाने क्यों कमरे की ओर जाते-जाते उसका गला सूखने लगा, कदम लड़खड़ाने लगे, आंखें यकायक भीगने लगी और दिल बेहिसाब धड़कने लगा।
दिल के समुंदर में इतने सालों शांत पड़ी वो लहर आज एक क्षण में सबसे तेज और शक्तिशाली हो उठी, उसे अनुभव हुआ कि जैसे उसकी भावना सत्या के प्रति पहले से कई ज्यादा मजबूत होकर लौट आई हो।
वो कमरा अब उसकी आंखों के सामने आ खड़ा था ।
मालिनी घबराते हुए अंदर झांकने की कोशिश करने लगी , उसकी नज़र एक बेड पर लेटे व्यक्ति पर पड़ी जो सिर से पैर तक सफेद ड्रेसिंग से बंधा हुआ था, उसके मुख के पास चमकती चार मॉनिटर, ऑक्सीजन मास्क, दोनों हाथों में आई वी ट्यूब दिखे। उसने आसपास देखा तो उसके बगल में सत्या के ही मां बाप परेशान बैठे हुए थे, जिन्हें देख, उसे हकीकत भांपते एक क्षण ना लगा और दूसरे ही पल घबराहट में उसके हाथ पैर ठंडे पड़ने लगे।
“नहीं! ऐसा नहीं हो सकता !!”
मालिनी जोर से चिल्ला कर दरवाजे के सामने सर पकड़ कर बैठ गई ।
पास में मौजूद नर्स उसे दौड़ कर सम्हालने लगती है और अचानक ऐसा क्या हो गया देखने सत्या की मां कमरे से बाहर आने लगी।
सावित्री जी ने मालिनी को अपने बेटे सत्या की ऐसी हालत देखकर रोते बिलखते पाया, और उसे शांत कर वे उसे वेटिंग रूम ले आई।
“अब तुम ठीक हो?” सावित्री जी ने मालिनी से पानी का ग्लास वापिस लेते हुए पूछा।
“कैसे हो सकती हूँ आंटी जी! आज अखबार में खबर पढ़ी और खुद को यहां आने से रोक ना पाई ।” मालिनी अपने आंसू पोछते कहने लगी।
“अब तुम जान गई हो कि वो सत्या ही है! और कोमा में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है! अब क्या करोगी?” सावित्री जी ने उससे सीधा सवाल किया ।
“आंटी जी मुझे पता है हम कभी एक नहीं हो सकते! वे मुझसे नफरत करते हैं! फिर भी मैं उनके लिए कुछ करना चाहती हूं!” मालिनी भावुक होकर उनसे कहती है।
“क्या करना चाहती हो?”
“आंटी जी मेरा दिल चाहता है कि जब तक वो कोमा से बाहर ना आ जाए मुझे उनकी सेवा करने दे। यह मेरा आपसे पहला और आखरी अनुरोध होगा। मैं आपसे वादा करती हूं उनके होश आने से पहले मैं यहां से चली जाऊंगी और वापिस कभी नहीं आऊंगी! प्लीज मना मत करिए!” मालिनी उनसे बेबस होकर कहने लगी।
मालिनी के अनुरोध पर कुछ विचार देने के बाद सावित्री जी ने आगे कहा,
“मुझे अंकल से पूछ कर आने दो।”
वह सत्या के प्रति उसके गहरे प्यार को नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। बुरा तो उसके साथ भी कुछ कम नहीं हुआ था।
वे मानती है कि उसने झूठ कहा और दुनिया में कौन है जिससे कभी कोई गलतियां नहीं हुई? अगर इंसान अपने किए पर पछतावा करता है तो उसे दूसरा मौका जरूर मिलना चाहिए। सावित्री जी अपनी तरफ से मालिनी को माफ करने तैयार थी ।
मालिनी वहां उनके आने का इंतजार करते बैठी यही सोच रही थी कि जिससे वह असीम प्यार करती थी वो आज एक-एक सांस के लिए जूझ रहा है। उसका एकमात्र मकसद उनके इन तकलीफ भरे दिन में साथ भर देना का है बस! वो जल्द ठीक हो जाए उससे ज्यादा उसे ऊपरवाले से और कुछ नहीं चाहिए और कुछ नहीं चाहिए।
“अंकल ने हा कह दी है! तुम आज रात से रह सकती हो! बेटा मुझे नहीं पता इन सब में कितने दिन लगेंगे! सत्या की हालत बहुत नाजुक है! तुम्हें जिस पल लगे तुम यहाँ से जा सकती हो!” वे आगे कुछ ना कह पाई क्योंकि उनका गला दुख के साथ भारी होने लगा।
मालिनी उठ खड़ी हो उन्हें गले लगा लेती है और वे दोनों एक दूसरे को सम्भालने लगती हैं।
मालिनी अस्पताल में लगातार 11 दिनों तक सत्या की साथ रही। उसने अपनी पूरी ताकत उन दिनों उसकी होती रिकवरी में लगा दी।
उसकी ड्रिप की जाँच,
मानिटर अलर्ट बजने लगे तो नर्स को दौड़कर बुलाना,
जब भी डॉक्टर राउन्ड पर आए तो सत्या कब जल्दी ठीक होगा पूछना।
रात भर मालिनी अनवरत कोमा में सोते सत्या को प्यार भरी निगाहों से देखती रहना चाहती थी क्योंकि जहा उसकी ये आंखे खुली नहीं की उसे यहां से ओझल होना होगा। फिर जिंदगी कहा उसे उसके इतने करीब आने का मौका देने वाली है।
मालिनी की सत्या के प्रति निष्ठा उसके माता-पिता और हॉस्पिटल वाले से अछूती नहीं थी तो ईश्वर से भी कैसे छुप जाती?
अखिरकार सभी की प्रार्थनाओ ने असर दिखाना शुरू किया और बारहवें दिन सत्या ने पहली बार अपनी आँखें खोलने का प्रयास किया।
कुछ दिनों में सत्या पूरी तरह से कोमा के बाहर आ गया और उसकी स्थिति अब नियंत्रण में आ गई।
सत्या के पहले शब्द अपनी माँ से ये थे कि,
“क्या मालिनी यहाँ आई थी?”
“आ, नहीं बेटा, वो यहाँ कैसे आ सकती है? तुम ठीक हो गए। उपरवाले का बहुत आभार!”
उन्होनें कृतज्ञता के साथ अपने हाथों को जोड़ते हुए कहा और विषय बदल दिया। अगर वे उसे सच्चाई बता देती तो उनका गुस्सैल बेटा उनपर कितनी बड़ी गाज गिराता!
माँ के साफ-साफ ना कहने के बाबजूद सत्या का मस्तिष्क बारबार अनुभव करता, जैसे मालिनी अपनी उसी कोमल मुस्कान के साथ उसे एकटक देख रही हो और कुछ क्षण बाद वो अचानक दरवाजा खोलकर, नम आँखों के साथ उसे बिदा कर चली गई हो।
डॉक्टरों ने कुछ दिन बाद उसे छुट्टी दे दी जो आई दिवाली उत्सव से कम ना था। हर तरफ जगमगाते दीपक की लौ को एकटक निहारते वो खुद को जिवित पाकर जहा एक तरफ ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था वही दूसरी तरफ अपने भीतर सालों से छाये अंधकार को प्रकाशमान करने उनसे प्रर्थना करने लगा।
खुद को बेवजह सोचने से रोकने वो अपने दोस्तो से बात करने अपनी माँ का फोन उठाकर अपने कमरे के भीतर चला गया।
उसकी उंगलिया कॉल लॉग पर गलती से दब जाती है, वो जैसे ही नंबर डायल करने बटन दबाने का प्रयास करता है कि उसे मालिनी नाम से सेव कई इनकमिंग और आउटगोइंग कॉल दिखते है। उसे शक हुआ और उसने झट से व्हाट्सएप खोला और अपनी माँ के साथ अनेकों चैट होती देख उसका गुस्सा फिरसे आसमान छूने लगा।
पर दिल का एक हिस्सा तो हर एक लाइन, बारबार पढ़ने
में मशगूल हो चुका था।
“मेरी बात मानने आपको और अंकल जी को दिल से धन्यवाद!”
“आंटी जी आज उन्हें बहुत तकलीफ हुई! कितनी बार उनका दिल कमजोर पड़ने लगा, ऊपर वाले से यही प्रर्थना है कि उन्हें कुछ ना हो”
” कल का ऑपरेशन सफल रहे बस, फिर सत्या बहुत जल्द कोमा से बाहर आ सकते है!”
” उनके घाव अब भरने लगे हैं!”
” आज ऊपरवाले ने सुन ही ली, वे ग्यारह दिनों बाद कोमा से बाहर आ गए! “
“अपने वादे अनुसार आपसे और उनसे विदा ले रही हूँ! मुझसे कोई भूल हुई हो तो माफ़ कर दीजिएगा ! अलविदा!”
उस दिन के बाद कोई भी मैसेज और कॉल नहीं !
उस दिन माँ ने झूठ कहा था! फिर भी गुस्सा आने के बावजूद वो मालिनी की उसके प्रति निस्वार्थ भक्ति और सेवा के लिए कृतज्ञ होने लगा ।
उनके बीच सब कुछ समाप्त होने के बाद भी मालिनी ने बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना उसके बुरे समय में उसका दिन-रात खयाल रखा। मालिनी ने जो किया वो केवल एक सच्चा जीवनसाथी ही कर सकता था।
सत्या को आज महसूस होते देर ना लगी कि मालिनी का स्थान उसने बहुत पहले ही उससे अपमानित कर छीन लिया था। उसके बावजूद वो उसके संघर्षो में उसके साथ हर पल खड़ी रही।
उसने मालिनी को अपनी सफाई देने और अपना पक्ष रखने कभी एक मौका तक नहीं दिया! बस अपनी मन की करते चला गया।
सत्या को आत्म गिलानी होने लगी, वो खुद को कटघरे में रख कर सोचने लगा,
“अखिर में किस तरह का इंसान हूँ! बस एक आत्म-केंद्रित और संकीर्णता से भरा हुआ व्यक्ति!”
क्या मैंने खुदको और उसे बस एक बात को छिपाए रखने की कुछ ज्यादा ही सज़ा नहीं दे दी? मैं ईश्वर को साक्षी मानकर अपना दिया हुआ वचन शायद भूल गया कि उसकी बीमारी में भी उसका साथ निभाऊँगा पर मेरी इतनी बेरुखी के बाद भी वो अपने दिए वचन को निभा गई। उसमें किस बात की कमी? कमी तो मुझ में है जो है उसे पहचा ना सका!!
वो मेरी थी! और मैंने ही अपनी नासमझी से उसे खुद से अलग कर अपना हँसता खेलता घरौंदा तबाह कर दिया! सत्या को उसका अपराधबोध होना भीतर से चुभने लगा।
” मैं जानता हूँ कि मैं माफ़ी के लायक नहीं पर कम से कम उसे इतना गहरा आघात पहुँचाने मुझे उससे एक बार बात तो कर लेनी चाहिए थी।”
इससे पहले कि उसका दिमाग दिल पर हावी हो जाए तो वो सीधा अपनी माँ के पास पहुंचा।
“मालिनी के साथ अपनी चैट को न मिटाने के लिए थैंक्स! बिना समय बर्बाद के यहां-वहां की कहानी सुनाये बिना मुझे उसका अड्रेस तुरंत दें!”
सत्या ने उस दिन सावित्री जी का कहा झूठ आज पकड़ लिया, डगमगाते स्वर से उन्होंने सत्या से बिना नज़रे मिलाएँ उसे उसका पता लिख कर दे दिया।
वे अपने बेटे के हाव-भाव से उसके भीतर होती भावनाओं की कशमकश उसके बिना व्यक्त किए बखूबी समझ सकती थी।
वो आगे क्या करना चाहता है? ये पूछने की हिम्मत उनकी बिल्कुल ना थी। बस वे प्रार्थना करती रही कि आज उसका टूटा हुआ घोंसला फिरसे आबाद हो जाये।
” भैया प्लीज जल्दी गाड़ी चलाओ!” सत्या ड्राइवर को हर दस मिनट में कहने लगा।
” भाईसाहब! आप खुशकिस्मत है जो दिवाली के दिन आपको कैब मिल गई। देख नहीं रहे हर घर में जश्न का माहौल है। सब घर के बहार अपने-अपने परिवार संग दिवाली मना रहे हैं। अब आप ही बताइए कि कैसे गाड़ी जल्दी चलाऊ?” ड्राइवर ने परेशान होकर कहा।
सत्या उसे अपना हाल-ए-दिल बया कैसे कर सकता था? जिसका अभी एक-एक पल एक-एक युग के बराबर कट रहा हो।
मानो उन गुज़रते लम्हों में मालिनी के लिए इतने सालों से दबा हुआ सत्या का प्रेम, पहले से कहीं अधिक प्रबल होकर लौट आया हो।
” लीजिए आ गई आपकी मंजिल!” ड्राइवर ने गाड़ी उस घर के सामने रोक कर कहीं जो ऊपर से नीचे रंगबिरंगी जगमग लाइट से सुसज्जित था।
” आपका धन्यवाद! ” सत्या ने तेज सासों के साथ कहा।
” आपके बचे पैसे!” ड्राइवर ने तेजी से अपने लंगड़ाते पैर से चलते सत्या को आवाज लगाते हुए पूछा।
” आप रख लीजिए!”
मालिनी से मिलने बस एक कदम की देर थी, कुछ पल खुद को संभालते उसने दरवाजे की घंटी दबाई।
मालिनी गुलाबी रंग की साड़ी पहन, माथे पर बिंदिया लगाई, रंगीन चूड़ियों को कलाई में समेट कर घर के द्वार पर सजाने दियों की थाल पकडी दरवाजा खोलने लगी,
अपने पैरों पर सत्या को खड़े हुए देख वो अभिभूत हो गई, मालिनी अपनी खुशी बया नहीं कर पा रही थी, मगर उसकी आंखे उसके भीतर के शब्दों को स्पष्ट रूप से कहने में सक्षम थी, जो इतने दिनों तक उसे केवल हॉस्पिटल के बिस्तर पर बिना सचेत हुए देखती आई थी।
मालिनी ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर मुस्कुराते चेहरे पर अपनी सुरमई आँखों से आंसुओं को आते रोकते हुए सत्या से पूछा।
“अब तुम कैसे हो?”
” मैं तुम्हारे बिना कभी ठीक नहीं था! एक पल के लिए भी नहीं! मैंने जो तुम्हारे साथ किया, उसके लिए मुझे बहुत दुख है। हमारे बीच जो हुआ, वो नहीं होना चाहिए था । गलती मुझसे भी कम नहीं हुई। मैं इस अपराध बोध की भावना लिये रोज ज़लज़ल कर नहीं मर सकता! मैं तुम्हारी माफ़ी का हकदार नहीं मगर मुझे उम्मीद है कि कभी ना कभी तुम मुझे जरूर माफ़ कर दोगी! आई एम सॉरी मालिनी!!”
सत्या ने अपने भारी मन से मालिनी को अखिरकार अपने दिल की व्यथा कह डाली।
मालिनी से तुरंत माफी की उम्मीद किए बिना सत्या ने वापस लौटने के लिए अपने कदम पलटे नहीं कि!
मालिनी ने झट से उसके हाथ को पकड़ा और उसके कंधों के सहारे उसका चेहरा अपनी ओर खींचा ।
सत्या की नम आँखों को मालिनी ने पोंछ कर, उसका माथा चूम कर उसके माथे को अपने माथे से लगा कहती हैं ।
” मैंने जो किया था सत्या! अपने पूरे होश में किया था। तुम से छुपाने का मकसद बस तुम्हें पाना था, इस डर से की शायद मेरी हकीकत जानकर तुम मुझसे दूर ना हो जाओ इसलिये तुम्हें अपनी बीमारी की बात नहीं कही क्युकी मैं तुम्हें कभी खोना नहीं चाहती थी। ! मैंने अपने जीवन में बस यही एकमात्र झूठ तुमसे कहा, जिसका मुझे कोई अफसोस नहीं! कोई अफसोस नहीं! ”
वे कुछ पल एक दूसरे को निहारते कही खो से गए और एकाएक आतिशबाजी की कड़कड़ाती अवाज से मालिनी सहम कर सत्या की बाहों में सिमट गई। सत्या उससे आलिंगन कर मुस्कराता ऊपर उस काले अंधेरे के बीच आसमान में अठखेलियाँ करती उन रंगबिरंगी चिनगारियों को देखता ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि चलो अब उनके बीच अब सबकुछ ठीक हैं।
यह शायद उनका अबतक का सबसे खूबसूरत बिताया हुआ पल होगा जब लोग कहते हैं कि “..और फिर वे खुशी-खुशी साथ रहने लगे!”
सभी मतभेदों और गलतफहमी को दूर कर मालिनी और सत्या एक नई शुरुआत करते है। एक खूबसूरत युगल जिन्हें देर से ही सही ये एहसास हुआ कि वे केवल एक-दूसरे के लिए बने हैं।
झूठ बोलकर शादी करना या करवाना किसी भी तरह से सही नहीं ठहरा जा सकता। मात्र एक गलती से बनी बनाई गृहस्थी को टूटते पल भर नहीं लगते और वे दुबारा अपनी-अपनी जिन्दगियों को पुनः कब और कैसे सवार पाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं क्योंकि सबकी किस्मत मालिनी और सत्या जैसी नहीं होती इसलिए शादी ब्याह के मामलों में पारदर्शिता नितांत जरूरी है।
आपकी,
रुचि पंत