खूनी डोर

“अरे काट काट काट!!घत तेरे की!! हर बार हमारी पतंग कैसे कट जा रही है रे?”

बिल्लू अपने बचपन के दोस्त और हर सुख-दुख के साथी जय से अपना हाथ माथे में पीटते कहता है। जिनका अपने बचपन से बड़े लड़कों की देखा-देखी कर पतंगबाजी का जूनन इस कदर चढा कि उन्हें दिन-रात सिर्फ पतंग ही दिखती । स्कूल से घर बस्ता पटका नही कि शाम तक छत पर सवार, ना खाने का होश और ना ही मां के चिल्लाने का उनपर कोई असर होता। पर इन सबके बीच एक बात अच्छी हुई कि उनके नौजवान होते वे पतंगबाजी में महारत हो गए। वे अबतक मौहल्ले के सभी लड़को की पतंग काट उन्हें धुल चटा चुके थे। उनकी प्रसिद्धी आसपास के मोहल्ले में भी इतनी फैल चुकी थी कि उन्हें संक्रांत के महिने पतंग उड़ाने विशेष आमंत्रित किया जाता था पर कुछ महीनों से उनका खेल अपनी छाप छोड़ रहा था जिससे दोनों परेशान हो रहे थे।

“मैं तुझे पहले से बोल रहा हूं कि ये मांझा कपड़ा सिलने लायक है, इससे पतंग उड़ाते रहे ना तो सब हमारी पतंग यूही काटकर चले जाएगें। “

जय ने बिल्लू से हर बार की तरह फिर से चाइनीस मांझा खरीदने की परोक्ष रूप से सलाह दी।”

देख भाई वो मांझा बहुत खतरनाक है। दो साल पहले बाबा का इस मांझे से गला टूवीलर चलाते टाइम जो कटा था वो आज भी बहुत दर्द करता है। वो तो गनीमत थी कि समय से अस्पताल पहुंच गए, नही तो उनका बचना नामुमकिन था”

बिल्लू इस मांझे के मौत के मंजर वाकिफ था इसलिए उसने जय को इसे इस्तेमाल करने कभी हामी नही भरी।”तू यार फोकट का डरता है, हर बार थोड़ी ना ऐसा होगा। मेरी बात सुन, यही धागा इस्तेमाल करते रहे तो हमें हारने की आदत डालनी पड़ जाएगी, बाकी तेरी मर्जी। “

” ऐसे मत बोल यार, हम मोहल्ले के नम्बर वन पतंगबाज है।”

“और जो इस धागे से उड़ाते रहे तो हम जल्दी नम्बर जीरो पर आ जाएंगे”

” फिर क्या करे दोस्त!!”

“वही तो इतनी देर से समझा रहा हूं कि ये मांझा नही बस मोटी सूती है, हम कितना भी उँचा उड़ाए या किसीकी पतंग काटने का प्रयास करें ये बीच में पक्का टूट जायेगा ।”

” तो क्या गारंटी है कि चाइनीस मांझा नही टूटेगा?”

” नही टूटेगा बिल्लू! क्योंकि चाइनीस मांझा नायलॉन का बना होता है और तो और इसका धागा शीशे और केमिकल से कोट किया होता है, जिससें हम हर उड़ती पतंग को एक झटके में काट के ठेर कर सकते है। “

” कोई और रास्ता नही है?” बिल्लू का मन आधा तैयार हो चुका था पर वो अभी भी दुविधा में था। जय उसे मनाने कुछ सोच कर बिल्लू से आगे कहता है।

“तुझे पता है जो लड़के हमारी पतंग के इर्द-गिर्द भी नही फटक पाते थे वो अब हमारी पतंग इतनी आसानी से कैसे कट रहे हैं कभी सोचा है?”

” कैसे?”

” इसी चाइनीस मांझे के इस्तेमाल से। “

“पर सरकार ने तो इसे बैन कर रखा है।”

“भाई चीजें बैन बस कागजों में होती है, बाजार में ये हर साल की तुलना धडल्ले से बन भी रहा है और बिक रहा है क्योंकि इसकी डिमांड बहुत है।”

जय ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।” पर तू लायेगा कहा से?”

“कहा से लाऊँगा वो मुझपर छोड़, तु बस एक बार हां बोल और चाइनीस मांझे के साथ पुरे मोहल्ले की कटी पतंग तेरे हाथों में होगी।” जय ने आखिकार बिल्लू को मना ही लिया और वे जोश में आकर उसका ताबातोड उपयोग करने लगे।

जय की बात सही निकली, उस माझें से वे और उनके परिवारवाले कभी आहत नही हुए पर उनके शौक की भरपाई रोड पर गाड़ी चलाते इन्सान, टूवीलर पर सामने बैठा मासूम बच्चा और तार पर बेठै अनगिनत पशु-पक्षियों को इस खूनी पतंग की डोर से अपनी जीवन लीला हर साल समाप्त कर भुगतनी पड़ती है, जिनका जय और बिल्लू जैसे अनेकों गैरजिम्मेदार पतंगबाजों का कोई सरोकार नही होता।

ये कैसी खूनी डोर है जो किसी और को हर्षित कर जान लेती है किसी और की

ये कैसा खेल?

जो खेलता तो कोई और है पर जान की बाजी लगती है किसी और की

आपकी,

रुचि पंत