कुछ तो गडबड है

अच्छा सुनो!! नाराज मत होना मुझसे दूध ज्यादा उबल गया है”

मेघना को घर में प्रवेश करते देख सौरव ने अखबार में अपने छुपे हुए चेहरे को एक पल हटाकर कहा ।

“क्या आप भी इतनी सी बात के लिए कोई माफ़ी मांगता है?” मेघना मुस्कराते कहती है।

अपने सामान का झोला डाइनिंग टेबल में रखते एकाएक उसकी नाक की इंद्रियों जागृत हो उठती हैं ।

“फिर ये जलने की बास कहा से आ रही है?”

” वो शायद पीछे गली में कचरे वाली कचरा जला रही होगी हमें क्या?” 

“कचरे जलने की अलग महक होती है और संडे के दिन उसकी छुट्टी होती है ये महक कुछ और ही है।” 

” अच्छा हां!! याद आया वो दूध उबालते टाइम गैस पर बिल्कुल थोड़ा सा दूध गिर गया था उसी की महक होगी” अखबार के सहारे अपने चेहरे पर आए हावभाव को छुपाते सौरभ कहता है।

“हाँ उसी की होगी। अच्छा ये बात छोड़ो बढ़िया अदरक वाली तेज चाय बनाऊँ? “

मेघना अब इस बात को भुलाना चाहती थी और उसने भी सोचा जहां कहीं से आए उसे क्या? उनके घर में तो कुछ नहीं हुआ ना? फिर काहे का टेंशन, जिसके यहां से आ रही हो वो जाने।

“नहीं! बिल्कुल नही और तुम भी मत पियो। तुम्हें पता है ज्यादा चाय पीने से कब्ज के साथ बहुत से नुकसान होते हैं। अरे ऐसे क्या देख रही हो? आज के पेपर में आया है। ” मेघना को उसे अचरज से देखने पर वो उसे अखबार का हवाला देने लगा।

“तुम और चाय के लिए मना हो ही नहीं सकता!! और जो यही बात में सालों से कह रही थी उसका क्या? अपनी आदत तो सुधारी नहीं उल्टी मेरी चाय की आदत लगा दी।” 

” बाजर से आई हो थक गई होगी, तुम आराम करो” सौरभ उसका हाथ सहलाते कहता है।

” खाना-पीना भी तो बनाना है।” दोनों पैर सोफ़े में फैलाते मेघना अंगड़ाई मार कहती है।

“अरे रहने दो, फ्रिज में कुछ ना कुछ तो होगा उसे ही खा लेंगे।” हर संडे अलग-अलग फर्माइश करने वाले सौरभ के मुख से आज पहली बार ऐसा सुन मेघना फिर से अचरज में पड़ गई।

” अच्छा जैसे कि मैं जानती नहीं हूं कि आपको बासी खाना वो भी संडे के दिन बिल्कुल पसंद नहीं। आज क्या हो गया है आपको? किचन से इतना आराम क्यों देना चाहते हैं?” एक बार को मेघना अपने पति पर गुमान करने लगी ये सोचते कि चलो देर से ही सही इस आदमी को अपनी पत्नी का मन पढ़ने आ गया,अच्छी बात है।

” पति-पत्नी के बीच आपसी समझ और तालमेल बढ़ाने के ये कुछ मूलमंत्र है जो हर जोड़े को करना चाहिए। ऐसे क्या देख रही हो? आज के पेपर में स्पेशल लेख आया है।” उसकी बात सुन मेघना झट से सोफ़े से लेटे बैठ गई।

“आज लग रहा है जैसे मैं आपको पहले कभी जानती ही नहीं थी। रोज पेपर पढ़ा करिए और उससे अर्जित ग्यान अपने जीवन में आज की तरह उतारते रहिए। ” मेघना उसके कंधे पर अपना सिर प्यार से रखते हुए कहती है ।

” जिसमें तुम्हें खुशी मिले।” सौरभ भी अपना पिछला भूल उसे स्नेह देने लगा। 

एक पल बाद मेघना अचानक उठ खड़ी हुई।

” गला सूख गया बिल्कुल!! इतनी धूप थी आज की पूछो मत।” किचन जाने के बीच वो मुस्कराती पलटकर आगे कहती है।

“अच्छा पानी तो पी लू? कि वो भी सेहत के लिए खराब है?” और वहां अखबार अपने हाथों में पकड़ सौरभ अपने धड़कते दिल पर काबू पाने जद्दोजहद करने लगा।

नहीं नहीं!! पाठकों ऐसा मत सोचिए कि मेघना प्लेटफॉर्म से सटकर टंगे हुए वाटर प्यूरीफायर से ग्लास में गुड़गुड़ गिरते पानी भरते वक़्त सौरभ को बहुत कामुक लग रही थी।

“सत्यानाश! तुमने तो कहा था कि छोड़ा सा दूध गिरा है? दूध का पूरा बर्तन जला डाला और गैस तो देखो! पूरी दूध में डूबी हुई है! आते साथ पूछ रही थी कि जलने की महक कहा से आ रही है तब से यहां वहां की बातें कर रहे हो!!सीधे सीधे से सच नहीं कह सकते थे कि मुझसे पूरा का पूरा किलो भर दूध जलकर खाक हो गया है!! ” दूध के साथ उनका कुछ पल पहले गढ़ा हुआ वो लाड-प्यार उतने ही जल्दी भाप बन फुर्र हो चुका था, वे अब अपने असली रूप में आ चुके थे।

“मैंने दूसरी गैस में पानी चढ़ाया था, दोनों को एकसाथ बंद भी किया फिर पता नहीं कैसे दूध वाली अपनेआप चालू हो गई? ” भूखे शेर के सामने जैसे घबराई बकरी मिमयाती है सौरभ ने कुछ उसी तरह कहा।

“मतलब गैस-चूल्हा खराब है? पागल समझा है क्या?”

“हाँ ऐसा ही लगता है” 

“मतलब कि मैं पागल हूं। ” 

“मेरे कहने का मतलब वो नहीं था। पक्का गैस-चूल्हा ही खराब है सर्विसिंग करा लेते हैं क्यों ठीक हैं ना?” 

” तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है ये जला साफ़ करने कितना टाइम जायेगा पता है?”

सच में बुरी तरह से जला हुआ दूध का बर्तन और दूध से मची हुई उसकी चमचमाती गैस देख उसे अपनी की हुई मेहनत में दूध फिरता सॉरी पानी फिरता हुआ देख सौरभ पर बहुत गुस्सा आ रहा था।

“अगली बार मुझे कुछ काम बोल कर मत जाया करो। देखो अब कितना कुछ साफ करना पड़ेगा तुम्हें। ” एक तो घर का कुछ काम करना नहीं और जब करने पे आए तो उल्टा और बिगाड़ चलते बनने भाई सहाब।

“ये लीजिए ब्रश और साबुन! अपना फैलाया रायता खुद साफ़ करना पड़ता है क्या हुआ ऐसे क्या देख रहे हैं? कल के अखबार में लेख आया था पढ़ा नहीं?” 

” पढ़ा था याद आया।” ऐसा कोई लेख कभी छपा ही नहीं था पर अपनी जान बचाने उसने हाँ कह दी।

“गुड, अब मैं आराम करने जा रही हूं।” मेघना अपना मोबाइल टेबल से उठा चलती बनी।

सौरभ कभी अपने हाथ में थमाए ब्रश और साबुन को देखता तो कभी उसकी भूल की कलाकृति गैस के कैनवास में उड़ेली हुए देख थकने लगता। ये कुछ सेकंड की लापरवाही उससे बहुत मेहनत वसूलने वाली हैं। जो भी हो आज की सीख उसे सालों से पढ़े अखबार से ज्यादा किलो भर दूध ने अपने जल जाने से दे जाएगी।

क्या आपके साथ भी कभी ऐसी घटना हुई है जब सच को छिपाने सामने वाले ने आपको कई यहा वहां की चूर्ण गोलियां खिलाई हो? जरूर बतायें।

आपकी

रुचि पंत