अनीता की शादी 

“हैलो!”

“हां बोलो!”

“बारात निकल गई है!”

“अच्छा!! “

तभी घोड़ी चढ़े दूल्हे राजा का फोन झपटा गया। 

“मैं सविता भाभी बोल रही हूँ देवरानी जी!आज तो देवर जी को छोड़ दो फिर कल से तो इन्हें हमसे मतलब ही नहीं होगा। जलद मिलते हैं नमस्ते!”

“अरविंद भैया ये सम्भाले चीकू को!हम सबको थोड़ा जश्न मनाते तो देख लो!उसके बाद आपका ही ढोल बजना है।”सविता भाभी आज अलग ही मूड में है क्योंकि आज अपनी शादी में पहना हुआ वो नौ किलो का जोड़ा आज भी उन्हें फिट हो गया!अपने तोतलू बेटे को अरविंद को दे वे बारात में गुम हो गई। 

“चीकू आज क्या है पता है?”

“आज मेली सादी है!”

“चीकू!आज मेरी शादी है!”

“नहीं मेली है! देखो मेली सैलवानी और मैं गोधी पर भी बैता हूँ! मम्मी से पूत लो!!मम्मी मम्मी!!”

“अच्छा ठीक हैं तेरी ही शादी है!खुश!!”

बैंड वाले ने ‘आज मेरी यार की शादी है’ पर अपनी ताल पिटी।

इसे सुन मानो अरविंद के सारे दोस्तों की रगों ने यारी की सौगंध खा ली हो और कई नए प्रकार के नृत्यों का अविष्कार इन्हीं क्षणो में होते चले गए।

वही वीडियो वाला उन सबके हावभाव कैद करने में दिलों जान से अपने सहयोगी साथ लगा हुआ था। 

जहा ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ ने, रोजमर्रा की भागदौड में हैरान-परेशान रहने वाली सभी भाभियों को अपनी-अपनी सास को नज़रंदाज कर! साड़ी को कमर में कस! ठुमके पर ठुमके लगाने मजबूर कर दिया। 

पर बच्चा पार्टी का कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता, वे छोटे-छोटे शरारती कोई धुन में पूरी ताकत से हाथ पैर हिलाते रहे।

उन सबके हर्षोल्लास देख दोनों दूल्हे अरविंद और चीकू को बड़ा मज्जा आ रहा था।

वही अरविंद की छोटी बुआ पीछे भीड़ के साथ हौले-हौले चलते दूल्हे के पिताजी को खोजकर सभीके बीच खींचकर लाई।

वे ना-ना करते रहे पर सबकी जिद्द के सामने मोती रंग की सफारी पहने,सीने से चिपकाए नेग के लिफाफों का छोटा काला बैग थामे हाथ ऊपर कर गोलमोल घूमते हुए देख अरविंद भावविभोर हो उठा।

बारात में सबसे आगे बाल कलाकार व युवा वर्ग,

उसके पीछे बैंड वाले,

फिर घोड़ी में बैठे अरविंद और चीकू,

उसके पीछे बारात के साथ चलते पचास वर्ष के ऊपरी बाराती और फिर एक वीआईपी गाड़ी भी थी,

जिनमें ताई जी और बड़े फूफा, जिन्हें शुगर तो पहले से थी ही! ऊपर से घुटनों के नए ऑपरेशन का दर्द! उफ्फ्फ! वे किसे कितनी ज्यादा तकलीफ है कि प्रतिस्पर्धा करते आराम से भीतर बैठे थे।

उन सबका घेराव रोशनी बिखेरती भारी भरकम रंगीन लाइटस, घंटों अपने सर पर लादी हुई अनेक महिलाये अपना पेट पालने जनरेटर की खरखराहट साथ चुपचाप चली आ रही थी।

“पिंकी रिंकू बारात द्वार पर आ गई जरा अनु को देख आओ”दुल्हन की माता सुषमा जी ने अपनी भतीजीयों से कहा।

वे सर से पैर तक चमकदार कपड़े पहन सजी अपने-अपने घाघरे नजाकत से कुछ इंच उठा अपनी सुनहरी सैन्डल की टकटक लिए बढ़ चली।

“अनीता दीदी आप तैयार हो गई बारात आगई हैं!!”

“हाँ एक मिनट भैया दरवाजा खोल दो।”उसने फोटोग्राफर से कहा।

कभी कुर्सी में बैठ,कभी आडे तिरछे खड़े हो, कभी गजरा पकड़े, मेहंदी देखते!अनीता को मुस्कुराते पोज मारते देख पिंकी रिंकू अपनी-अपनी शादी के सपनों में कहीं गोते मारने लगी।

कुछ देर बाद दरवाजा किसीने खटखटाने हुए कहा। 

“दीदी जल्दी करो जीजाजी स्टेज पर पहुँच गये है!!”

“हा बस हो गया चलो!!”शर्माती घबराती अनीता बार-बार अपनी सहेलियों से एक ही सवाल पूछती रही!

“मैं अच्छी तो दिख रही हूँ ना?”

दो चार बार “हाँ तू बहुत सुंदर दिख रही है!!”सुनने के बाद अचानक अनीता का आत्मविश्वास बढ़ गया।

उसकी सहेलियाँ,भाई-बहन बड़े प्रेम से उसे धीरे-धीरे लाल कालीन से गुज़रते, उस अनेक फूलों से सजे स्टेज की ओर बढ़ाने लगे।

वही डीजे वाले बाबु ने उन्हें आते देख अपनी धुन झट बदलकर ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है!’बजाया!

ये सुन दोनों ओर के फोटोग्राफर फटाफट अनीता के पास दौड़ पहुंच गए।

एक उसे आहिस्ता-आहिस्ता चलने कहने लगा और दूसरा थोड़ा ऊपर देखे,थोड़ा और,बस बस थोड़ा सा नीचे!बस बस बिल्कुल सही!कहने लगा।

मेहमानों के बीच घिरे लड़की के पिता केशव जी,दूर से बेटी को दुल्हन सजी देख अपने जज़्बातों पर काबू ना कर पाए और वे अपने दिल पर हाथ रख कुर्सी में धम्म से बैठ गए।

“मेरी बेटी कैसे इतनी जल्दी बड़ी हो गई?आज बाप का आँगन छोड़कर अपने पिया के घर चली जाएगी मेरी बच्ची!!”

अपनी लाड़ली की शादी के दिन उनकी हालत ऐसी होनी है ये उनकी भाग्यवान बरसों से जानती थी।

“आप सम्भाले अपने आपको इसी शहर में तो बिदा हो रही हैं। देखना उसका एक पैर मायके और दूसरा ससुराल पर होगा”

“आज तुम्हारे बाबूजी को नमन सुषमा!एक बाप के लिए कितना कठिन पल होता है अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और को सौपना!”

“ये तो विधि का विधान है हर पिता को करना होता है।अब चलिये आंसू पोंछे खुशी का मौका है”

वही स्टेज पर थर्मोकोल पर बने दिल आकार पर तीर चीरते के बीच लिखित,”अरविंद संग अनीता”की सजावट के सामने खड़े वे नव जोड़ी स्टेज पर आते-जाते मेहमानों के साथ फोटो खिंचवाते रहे। इन पलो में वे अपनेआप को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझ रहे थे।

जिन्हें जाने की जल्दी थी वे एक कुर्सी टेबल पर बैठे रजिस्टर पेन थामे समाज के वरिष्ठ की ओर अपने-अपने लिफाफे लिए बढ़ते चले गए, जिनमें उतना ही नेग था जितना कि केशव जी द्वारा उनके यहां की शादी में दे गये थे।जिसका रिकार्ड उन सभी के पास ऐसे ही शादी वाले रजिस्टर में लिखा हुआ है।

जो शादी का भरपूर आनंद उठाने आए हैं वे बारात आने के पहले ही आधे व्यंजन का स्वाद चख चुके है और प्लेट लिए व्याकुल गुज़रते करीबियों को क्या खाना है क्या नहीं,किसका डोंगा कहा रखा गया है उसकी जानकारी चलते-फिरते देते अन्य बचे स्टॉल की ओर रुख करने लगे।अंत में उनकी प्लानिंग एक राउन्ड और मारने की है जब वे सबसे अच्छा क्या बना था उसे एक-एक बार और चखेएंगे।

अधिकतर मेहमान जिनके सभी बच्चों की शादियों निपट गई वे उनके घर की शादियों में मिले उपहार जिनमें अधिकांश ठंडे पानी की बोतल, हॉट केस, डिनर सेट इत्यादि इत्यादि को दूल्हे दुल्हन को टीका मुस्काते फोटो खिंचवा बढ़ते चले गए।अब यही प्रथा अरविंद अनीता अन्य कि शादियों में करते दिखाई देंगे।

सम्पूर्ण उपहारों के बीच शायद ही कोई एक्का दुक्का तोहफे होंगे जिन्हें सच में उनकी शादी के लिए विशेष खरीदा गया हो और जो उनके किसी काम का निकले। खैर!

एक दिन की चमक-दमक के लिए अपनी सालों की ज़मा पूँजी स्वाहा करने वाले दोनों पक्ष!अपने करीबीयों को नवदंपति के फेरों बीच ऊंघते शादी में कमियां गिनाते सुनते रहे।

सुबह हुई, बेटी बिदा हुई!

दोनों के माँ बाप”भगवान ने सब अच्छे से निपट दिया” कह, ऊपरवाले को धन्यवाद देते रहे।

अगले दिन मेहमानों के चले जाने के बाद,एक एकान्त कमरे में घर के भरोसेमंद को पूरे नेग का कुल निकालने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है जो अपनेआप में बड़े सम्मान की बात है। फिर उसी राशि से अधिकतम शादी के बचे खर्च का भुगतान किया जाता है।

कुछ दिनों बाद उनकी शादी का एल्बम और वीडियो हाथों में पहुंच जाता है जिसे सब बड़े चाव से उन खूबसूरत यादों को बार-बार देखकर ताजा करने का क्रम महीनों चलाते रहते है। आगामी आनेवाले मेहमानों को चाय के साथ एल्बम भी परोसा जाना निश्चित है।

सच में भारतीय शादियों की अपनी अलग खट्टी-मीठी कहानिया होती हैं। कितने अनगिनत रिश्ते दूर के रिश्तेदारों द्वारा दूसरों की शादियों में तय हो जाते है। कई युवाओं के दिल भी आपस में मिल है। सालों ना मिलने वाले रिश्तेदार- प्रियजन शादी का एक निमंत्रण पत्र पाकर प्रफुल्लित हो उठते है। इसलिए तो शादी किसी उत्सव से कम कहा कहलाती है!

ऐसी कई बातें हमें अपनी शादी की आजीवन स्मरण रहती हैं, जो कभी गुदगुदाती है तो कभी जिनसे हम बिछड़ गए उन्हें तस्वीरों में देख रुलाती भी है।

आपकी, 

रुचि पंत